Friday, May 14, 2010

हर बात मे जल्दबाजी ठीक नहीं

-सच्चिदानंद जोशी-
श्री जयराम रमेश ने दीक्षांत समारोह के दौरान पारंपरिक रूप से पहनाया जाने वाला गाऊन उतार फेंका। सिर्फ उतार ही नहीं फेंका वरन् उतारने के साथ ही उसे बर्बर औपनिवेशिक संस्कृति की गुलामी का प्रतीक भी कह ड़ाला। इससे वे क्या हासिल करना चाहते थे ये तो वे ही जाने पर उन्होंने एक खलबली तो लोगों के मन में मचा ही दी, जो शायद उनका ऐसा करने का प्राथमिक उद्देश्य था। यदि ऐसा न होता तो वे यह काम उस समारोह के दौरान न करके, पहले भी कर सकते थे। वे पहले ही यह हिदायत दे सकते थे कि वे दीक्षांत समारोह के दौरान गाऊन नहीं पहनेंगे या वे ऐसा बयान कार्यक्रम के पहले भी जारी कर सकते थे। लेकिन ऐन कार्यक्रम के बीच अपने भाषण के दौरान ऐसा करना निःसंदेह इस बात की ओर इशारा करता है कि वे इस विषय पर किसी सुविचारित सकारात्मक बहस की बजाय सिर्फ एक खलबली, एक सेन्सेशन पैदा करना चाहते थे।
जरा सोचिये जिस दीक्षांत समारोह में श्री जयराम रमेश ने ऐसा किया यदि उसमें उनसे कोई बड़ा ओहदेदार मसलन राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश होते तो क्या वे ऐसा कर पाते। या फिर यदि यह दीक्षांत समारोह किसी पारंपरिक विश्वविद्यालय का होता जहाँ स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध उपाधियां प्रदान की जा रही होती तो क्या वहां ऐसा वे कर पाते। पारंपरिक विश्वविद्यालयों में जहाँ राज्यपाल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश जैसे ओहदेदार पदेन कुलाधिपति या कुलाध्यक्ष की हैसियत से दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते है, उसका पूरा फार्मेट परिनियम(स्टेट्यूट्स) की धाराओं से तयशुदा रहता है। यहाँ तक कि कौन किस क्रम में आयेगा, किस क्रम में बैठेगा, किस क्रम मे बोलेगा सब कुछ तय रहता है। दीक्षांत समारोह में दिये जाने वाले भाषण भी पहले से ही बनाये गये होते है जिनकी प्रतियाँ समारोह के दौरान वितरित भी की जाती है। ये परिनियम कार्यपरिषद् एवं कुलाधिपति द्वारा अनुमोदित होते हैं। ऐसे में दीक्षांत समारोह के दौरान उस किस्म के ड्रामें की गुंजाईश कम ही रहती है, जैसा कि जयराम रमेश जी ने किया। रमेश जी ऐसा कर पाये क्योंकि जहाँ वे ऐसा कर रहे थे उस भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के वे विभागीय मंत्री है, उसकी समिति के पदेन अध्यक्ष है और उस दीक्षांत समारोह के वे ही सबसे बडे़ ओहदेदार थे। उस संस्थान द्वारा सिर्फ डिप्लोमा प्रदान किये जाते है किसी विश्वविद्यालय की उपाधियाँ नहीं।
उस संस्थान में श्री रमेश का रसूख जानने के बाद यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि उस संस्थान में रमेश जी का रसूख इतना ही अधिक था, तो उन्होंने गाऊन को नकारने के लिये कदम पहले से क्यों नहीं उठाये। उत्तर स्वाभाविक ही है कि यदि वे ऐसा करते तो उस पर कागजी बहस होती, कार्यवाही भी होती लेकिन वैसा ड्रामा कहाँ हो पाता जैसा हुआ या जैसा वे करना चाहते थे। दीक्षांत समारोह की गरिमा को किस तरह बनाये रखना चाहिये इसका उदाहरण अभी कुछ पूर्व ही हमने देखा है, जब न्यायमूर्ति श्री बालकृष्णन ने दीक्षांत समारोह में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को उनके साथ बैठाये जाने के सवाल को बिना तवज्जों दिये, निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वह समारोह सम्पन्न कराया।
लेकिन इस मामले में हम श्री रमेश की ही क्यों चर्चां करें। आज तो सारा समाज ही वही कर रहा है। आज समाज की रूचि भी किसी ठोस कार्यवाही की बजाय सिर्फ ड्रामा या सेंसेशन में ही है और उसी का समाज मजा लेता है।
रमेश जी ने उधर गाऊन उतार फेंका, इधर सभी लोग पारंपरिक गाऊन से तौबा करने लगे और उसे उतार फेंकने की तैयारी में जुट गये। एक बहस सी छिड़ गई जिसमें सभी शामिल हो जाना चाहते थे और अमूमन सभी को उस गाऊन में हमारी गुलामी और बर्बर औपनिवेशिकता की गंध आने लगी। कुछ लोग तो और भी चार कदम आगे बढ़कर गाऊन के धंधे में भ्र्रष्टाचार की बू भी सूंघने लगे और दीक्षांत समारोह जैसा पारंपरिक और बेहद औपचारिक समारोह उथली बहस का मुद्दा बन गया।
कोई धोती कुर्ते पर अड़ गया तो कोई पायजामा कुर्ते पर आ गया। किसी को पैण्ट शर्ट ही भाने लगा, तो कोई जोधपुरी सूट में अपना दीक्षांत सजाने के मंसूबे देखने लगा। न गाऊन पहनते वक्त किसी ने उसके औचित्य को गंभीरता से लिया था न उसे उतारते वक्त गंभीरता से सोचने की जरूरत समझी। जिनके लिये पिछले वर्षों तक गाऊन पहन कर दीक्षांत समारोह में बैठना शान थी, आज अचानक उन्हें गाऊन से एलर्जी हो रही थी और वे जितनी जल्दी हो सके उसे उतार फेंकने की तैयारी में थे। कुछ लोग तो इसमें राष्ट्रीय अस्मिता छोड़ क्षेत्रीय और प्रादेशिक अस्मिता के बीज ढूंढने में लग गये और गाऊन के बहाने अपना क्षेत्रीयतावादी दर्द उजागर करने में कामयाब हो गये। दीक्षांत समारोह की पोशाख न हुई फैंसी ड्रेस काम्पीटिशन हो गया। जिसे जो मन में आया वही सुझाने लगा और दीक्षांत समारोह की पूरी गंभीरता गाऊन के पचडे़ में पड़कर बचकाने सवालों में उलझकर रह गई।
इस सारे शोर शराबे में लोगों का ध्यान इस ओर गया ही नहीं कि वे इस बात का फैसला कर पाते कि क्या श्री रमेश का बीच समारोह में ऐसा करके पूरे समारोह का नक्शा बिगाड़ना उचित था। क्या किसी केन्द्रीय मंत्री और उस संस्थान के प्रमुख को बीच कार्यक्रम में ऐसा करना शोभा देता है। इस बात की ओर भी कम ही लोगों का ध्यान गया होगा कि गाऊन उतारने के अलावा भी श्री रमेश ने उस समारोह में अपने दीक्षांत भाषण में और क्या क्या मुद्दे उठाये, किन किन विषयों पर बात की। वन प्रबंधन जो कि आज हमारे लिये अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, उस पर उस विभाग के केन्द्रीय मंत्री के क्या विचार है, क्या योजनायें है, और उनसे हमारा समाज किस तरह लाभान्वित हो सकता है, इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। इस शोर शराबे में इस बात की चर्चा भी उलझकर रह गयी कि उस संस्थान में किस प्रकार से विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और वे समाज में अपनी भूमिका कितने कारगर ढंग से निभा पा रहे है।
जिस गाऊन को हम वर्षो से ढो रहे थे उससे निजात पाने का और कोई बेहतर तरीका ढूंढा जा सकता था, लेकिन उससे वो हाईप क्रिएट नहीं होती जैसी श्री रमेश के बीच समारोह में गाऊन उतारने से हुई। फिर इससे क्या फर्क पड़ता है कि उनके ऐसा करने से उस गरिमामय समारोह की भद्द पिट गई और उसका सारा महत्व ही गौण हो गया। हमारी दासता के प्रतीक के रूप में और भी कई सारी बाते आज भी हमारे तंत्र में अलग अलग जगह मौजूद है। कुछ वर्षों पूर्व तक हमारे देश का आम बजट भी शाम पांच बजे प्रस्तुत किया जाता था, जिसका कारण हमारी औपनिवेशिक परंपरायें ही थी। हमारा वित्तीय वर्ष अभी भी 1 अप्रैल से 31 मार्च है, जिसके मूल में भी कारण कहीं न कहीं औपनिवेशिक है। लेकिन इन सब मुद्दो पर हल गंभीर चर्चा करके निकाला जाना चाहिये, न कि आनन फानन में गाऊन उतार कर। इस लिहाज से देखा जाये तो जितना गलत था वर्षों तक बिना सोचे विचारे दीक्षांत समारोह में उस गाऊन को ढोना, उतना ही गलत था किसी दीक्षांत समारोह के दौरान गुस्से और खीज में उसे उतार फेंकना। कब तक हम दुष्यंत के उस शेर को यादकर भी भूलते रहेंगे
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरा मकसद है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।

2 comments:

  1. मेरी पिछली टिप्‍पणी प्रदर्शित नहीं हो रही है, शायद स्‍वीकृति विचाराधीन है.

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  2. पसन्द आया। सही है कि पहले से कहाँ थे जयराम रमेश। तमाशा।

    शाब्दिक सत्यापन(वर्ड वेरिफ़िकेशन) हटा दें।

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